30 मई 2010

और आखिर कर वह औरतखोर मारा गया...

और आखिर कर वह औरतखोर मारा गया...

पता नहीं मरने वाले के लिए इस तरह के शब्द का प्रयोग करना चाहिए या नहीं, पर कर रहा हूं । शनिवार की सुहानी सुबह के बाद एक खबर ने जिन्दगी के विविध रंगों में से एक बार फिर से स्याह रंग से रूबरू कराया। सुबह सात बजे के बाद गांव में खबर आई कि सुबोध को किसी ने मार कर फेंक दिया। इस खबर के  बाद बहुत से लोग गांव से करीब दस किलोमीटर की दूरी पर स्थित कोसरा गांव चल पड़े जहां सुबोध की लाश फेंकी हुई थी और इन लोगों में मैं भी शामील था। कोसरा जाने के बाद एक जिन्दगी के दर्दनाक पहलू से सामना हुआ। सुबोध कुमार की लाश कोसरा गांव में खंधे में फेंकी हुई थी और देखने वालों की भीड़ खेत में उमड़ पड़ी थी। कोसरा गांव सुबोध का ससुराल था और वह वहीं रहता था। घटनास्थल पर जाने से पहले गांव में ही लोगों ने अन्दाजा लगा लिया की औरत के चक्कर में जान गई होगी और वहां जाने पर यही निकला। बचपन में गांव के प्राथमिक विद्यालय में हम लेाग साथ ही पढ़े थे और आज उसकी लाश खेत में पड़ी हुई थी। उसकी हत्या बेरहमी से की गई थी तथा लाश को हत्या की जगह से लाकर खेत में फेंक दिया गया था। जूता-मौजा तथा पैंट-शर्ट लाश के ही बगल में ही रखा हुआ था और वहीं पर लोग चर्चा कर रहे थे की बगल के गांव में ही इसका एक शादीशुदा महिला के साथ अवैध सम्बंध था जिसकी वजह से इसकी हत्या हुई। सुबोध की पत्नी पुष्पा कुमारी भी रोते हुए किसी महिला के फोन आने की बात कह रही थी। सुबोध कुमार की उम्र पैन्तिस साल के आस रही होगी। उसकी शादी 1991 में हुई थी और उसने भी प्रेमविवाह किया था। सुबोध की मृत्यु पर घटनास्थल पर भी कई लोग अफसोस नहीं कर रहे थे तथा कह रहे थे ऐसा ही था जिसकी वजह से मारा गया। सुबोध के ससुर वहीं कह रहे थे कि बहुत मना करते थे कि दुसरी महिलाओं से सम्बंध नहीं रखिए पर नहीं मानते थे और पता नहीं क्या बात थी जहां जाते थे वहीं इनका अवैध सम्बंध बन जाता था और महिला के चक्कर में ये रात दिन लग जाते थे। सुबोध की हत्या भी विभत्स तरीके से की गई। संभावना के  अनुसार मौके पर पकड़े जाने की वजह से वहीं पहले इसकी जम कर पिटाई की गई  उसके बाद गला में रस्सी लगा कर हत्या कर दी गई। सुबोध में पिता और भाईयों ने उसे घर से भगा दिया था। इतनी उर्म में जबकि की वह तीन बच्चों के पिता भी बन गया कभी कोई काम नहीं किया और हमेशा औरतों के चक्कर में ही रहा। इसकी चर्चा भी भाई से लेकर ससुर तक करते रहे। सुबोध का संबध कई महिलाओं और लड़कियों से भी रहा और इसने कितने की जिन्दगी भी बबाZद की और आज जिस शरीर के भूख के लिए वह ऐसा करता रहा वह मिट्टी पर पड़ा मिट्टी बना हुआ है।

खौर हम लोग लाश को पुलिसिया कार्यवाई के बाद शेखपुरा से 100 कि0मी0 दूर मुुंगेर पोस्टमार्टम के लिए ले गए और इसके लिए पुलिस ने निजी स्तर पर ही वाहन की व्यवस्था करने की बात कही। सुबह एक कप चाय पी कर जो घर से निकला और एक दर्दनाक यात्रा में शामील हो गया। किसी तरह हम लोग मुंगेर पहूंंचे जहां पोस्टमार्टम की प्रक्रिया से पहली बार रूबरू हुआ। एक दर्दनाक और हृदयविदारक दृश्य। कलेजा मुंह में आने वाला नजारा। पर देखा की जिस पोस्टमार्टम की प्रक्रिया पर अभियुक्त को फांसी होती है उसे एक मामूली सा डोम अंजाम देता है और पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टर कहीं नज़र नहीं आए। मालूम हुआ की यही सर्वोसर्वा है। फिर प्रारंभ हुआ डोमराजा के  नखरे और पोस्टमार्टम कें लिए 1000 के नज़राना उन्होने अभिभावक से वसुल किया तब जाकर पोस्र्टमार्टम किया। पता नहंी क्या किया मैं वहां से उस वक्त हट गया क्योंकि मुझसे यह सब देखा नहीं जा रहा था।
उसके बाद फिर शव को गंगा किनारे ले जाकर दह-संस्कार किया गया और देखा की जिस जिन्दगी पर लोग कितने कितने गुमान करते है वह धुंआ धुंआ हो गया। एक तरफ जहां लाश जल रही थी वहीं दूसरी तरफ  लोग मरने वाले को कोश रहे थे तथा यह भी कह रहे थे कि आज नही न्तो कल यह मारा ही जाता और  अन्त में उसके  बड़े भाई ने बड़े ही बुरे शब्द कर प्रयोग करते हुए कहा कि इसको उस चीज का चस्का लग  गया था, चलो अच्छा ही हुआ, एक औरतखोर मारा गया। सुबोध के दस साल का बेटा ने अपने बाप को को मुखाग्नि दी। ससुर से भाई तक उसके द्वारा औरत के पिछले बुराए गए रूपये का हिसाब दे रहे थे तो  इस प्रकरण मे किस किस को फंसाना है इसकी बात कर रहे थे।
मैं तो  सारी बातों को चुप चाप सुनता रहा और देखता रहा धू धू करते लौ के साथ जलते हुए उस शरीर को जिसकी भूख के लिए न जाने सुबोध ने क्या क्या किया।
फिर देर रात शवदाह कें बाद हमलोगों ने गंगा स्नान किया (पवित्र होने के लिए कथित रूप से ऐसा करना जरूरी माना जाता है पर मैं तो बस स्नान करने की नियत से स्नान किया) और एक कप चाय के सहारे रात भर के थकादेने वाली यात्रा के बाद घर पहूंच गया।

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