01 अक्तूबर 2014

मैला आँचल...विभोर....विभोर..

मैला आँचल

रेणु जी को पढ़ते हुए लगता है अपने आस पास सब देख रहा हूँ
...बोली चाली...और कथा चरित्र , सब कुछ जिन्दा लगता है ....जैसे मेरे गांव की घटना हो...देखिये.. जब गीत होता है ...अरे वो बुडबक बभना....चुम्मा लेबे में जात नहीं रे जाए.....गांव के कई  तथाकथित सभ्य और पाखंडी चेहरे आँखों के आगे नाचने लगते है...

और जब गांधीवादी बालदेव  जी कहते है की खटमल बहुत हो गया तो क्या घर को ही आग लगा देनी  चाहिए....तो आज के हालात..को कोसने वाले हमारे जैसों के लिए करारा जबाब मिल जाता है...

और कॉमरेड कालीचरण.. कैसे डकैती केस में कौंग्रेस के द्वारा फंसा दिया जाता है और बेचारा पार्टी की  बदनामी से चिंतित है और पार्टी उसे छोड़ देती है...इस्तेमाल कर ...

और कैसे आजादी के बाद कौंग्रेस पार्टी पे संघर्ष करने वालों की जगह सेठ- साहूकार कब्ज़ा कर लेते है और सच्चे कॉंग्रेसी को मार देते है....

और काली टोपी वाले.संघी.....दबंग के साथ मिलके.. हिन्दू हिन्दू चिल्लाते है...

और एक पगला डॉक्टर भी... बेचारा....गांव में जीवन देने में जुट जाता है.. पगला....ओह... ओह..
विभोर....विभोर..

सच मुच मौन कर देते है रेणु....

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