23 अप्रैल 2015

बरसाती नेता....(व्यंग्य)

बरसाती नेता एक अति विशिष्ट विशेषण है और यदि आप अब तक इससे अपरिचित है तो खड़े खड़े आपको राष्ट्रद्रोही और असमाजिक घोषित कर दिया जायेगा । क्यों? क्योंकि तब आप चुनाव के समय एकाएक उग आये विचित्रवीर नेताओं को इसलिए नहीं जानते होंगे कि आप वोट या तो नहीं देते या फिर वोट बैंक की राजनीती नहीं करते । करते होते तो देखते की कैसे चुनाव आते ही बरसाती नेता निकल आये है और टर्र टर्र कर रहे है ।

बरसाती नेता भी विचित्र विचित्र तरह के, कुछ धन पाने से पहले धन लगाने को राजनीती समझने वाले तो कुछ राजनीती को बाप दादा की बपौती मानने वाले । सभी प्रकार के बरसाती नेता मिलते है । पाँच सालों तक जनता को धनार्जन का जरिया समझने वाले नेताजी को एकाएक बरसात आते ही
जनता, जनार्दन नजर आने लगती है । पाँच सालों तक ये बरसाती नेता शीतनिद्रा में चले जाते है तभी ये सब होता है । इसलिए वे शीतनिद्रा में जाने पे जनता से भर मुंह बात नहीं करते, बात कम गाली ज्यादा और चूं चपड़ किये तो लात भी लगाते है । इन दिनों ऐन केन प्रकारेण धनार्जन पहली और आखरी प्राथमिकता होती है । ठेका - पट्टा लो और रोड हो या पूल-पुलिया सबको फाईलो पे बना दो, या कोई बिशेष बात हुयी तो सड़क भी बना देते है पर इसके लिए इनके अभियंत्रकी ज्ञान अपरंपार होती है । गाँव के खेत से रेत निकालो और नेताजी की दुकान से खुद का ब्रांडेड सीमेंट लाओ और जितना पब्लिक कहे उतना मिलाओ और बिल निकलने तक सड़क सुरक्षित रहे भगवान से दुआ मनाओ । धन अर्जित हो गया । कई स्कोप है । सबको करते खामोश है ।


चुनावी नेता दो चार माह में अपना बाजार ऐसे बनाते है जैसे समाज सेवा में उनकी कोई सानी न हो । अख़बार, टीवी और सड़क सब जगह नज़र आने की कला में इनको महारत होती है । वैसे महारत तो इनको अभिनय कला में भी हासिल है । चुनाव के पहले ये नायक की भूमिका तथा चुनाव के बाद खलनायक की भूमिका निभाते है । ऐन चुनाव के समय जाने कहाँ से इनको ब्रह्म ज्ञान प्राप्त होता और भींगी भींगी बिल्ली बन ये गरीब- गुरबा, दबे-कुचलों की भक्ति करने लगते है । बड़ा हो की छोटा सबका पैर पकड़ लेंगें । बेचारी जनता इमोशनली होकर फंस जाती है और नेता नाग बन डंस जाते है ।

कुछ धनपशु नेता जी भी चुनावी बरसात में निकल आते है और धन को वोट के लिए दोनों हाथ से लुटाते है । जनता समझती है की नेताजी बुद्धू है और वो कभी यह तो कभी वह चंदा के नाम पे पैसे ऐंठ लेती है । नेताजी के पैसे से कहीं यज्ञ होता है तो कहीं क्रिकेट टूर्नामेंट । कभी कोई अपने पल्ले का वोट बैंक दिखा के नोट ऐंठ लेते है । नेताजी सोंचते है बच्चू जितना लूटना हो लूट लो! जानता हूँ की राजनीती मल्टी टाइम इंभेस्टमेंट है और एक बार मौका मिला नहीं की मल्टी टाइम रिकवरी होने लगती है । एक लगाओ लाख पाओ । 

अब जब राजनीती हाई प्रॉफिट का धंधा बन गया है तो धंधेबाज लोग पूंजी फंसा रहे है पर हाँ ऐसे समय में समाजवाद, साम्यवाद, बुर्जुआ, सामंतवाद आदि- इत्यादि आदर्शों के सहारे राजनीती करने वाले खूसट- खर्राट लोग चाय चौपाल की हासिये पे बैठ सुनहले भारत पे भाषण देते रहते है; देते रहेंगे...

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (26-04-2015) को "नासमझी के कारण ही किस्मत जाती फूट" (चर्चा अंक-1957) पर भी होगी।
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    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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