29 फ़रवरी 2016

जय किसान

बजट की पेचीदगियों को समझना मेरे जैसों के बस में कभी नहीं रहा है। यही कारण था कि बजट में क्या मंहगा हुआ और क्या सस्ता इसी को देख कर बजट के प्रति धारणा बना लेता था। इस बार ऐसा नहीं हुआ।
यह पहली बार है कि बजट में किसानों की चर्चा हो रही है। सुन कर आत्मसंतोष हुआ। जमीन पर किसानों के हितों की बात कहां तक उतरेगी यह कहा नहीं जा सकता, पर देश के बजट में किसानों की बात प्रमुखता से पहली बार देख रहा हूं। यह देश के अन्नदाताओं के लिए भविष्य का द्वारा खोलने वाला है।
हलांकि मैं मजबूती से इस बात को पहले भी कहता रहा हूं कि देश में नयी योजनाओं की बिल्कुल जरूरत नहीं है, जरूरत है योजनओं को सौ की सौ फीसदी जमीन पर उतारने की। योजनाओं की लूट रोकने की। 
खौर, कुछ कमियां है, पर लोकलुभान से दूर बजट में किसानों की बात सुन-समझ कर मेरे जैसे गांव में रहनों वालों के लिए संतोष दे रहा है, शायद कुछ किसानों को भला हो... किसानों को उसके उपज का लागत से अधिक कुछ आमदनी हो... किसानों को उर्वरक उचित मुल्य पर मिले.....आमीन

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