09 मई 2017

बारिश, आसमान , धूल और जीवन

बारिश के बाद आसमान कुछ बदला-बदला सा लग रहा है। कुछ-कुछ नया जैसा दिखता है। ऐसा लगता है जैसे धूल की एक परत जम गई थी और आसमान धुंधला-धुंधला सा हो गया था पर हल्की सी बारिश ने आसमान पर छाए धूलकणों को साफ कर दिया। पेड़-पौधे नए-नए से लगने लगे। पुरवइया हवा कुछ-कुछ नया सा लग रहा है। जैसे कुछ मादकता इसमें भूल गई हो। पंछियों की चहचहाहट नई सी हो गई है। घरों की दीवारें धुल गई। अजीब सा लग रहा है। यह बारिश जीवन में भी कभी-कभी होनी चाहिए। कुछ-कुछ बदल ही जाए शायद! आसमान पर भी धूलकण छा जाते हैं और आसमान धुंधला धुंधला सा हो जाता है। जीवन का दुख बारिश ही है क्या..जाने यह कैसा चिंतन है जो अभी अभी इस आसमान को देखकर हिलोरे मारने लगा है। जीवन! वैसा जीवन जिसे बड़ी मुश्किल से शून्य से शुरू कर पहले या दूसरे पायदान तक ही ला सका हूँ और अचानक से सांप-सीढ़ी के खेल जैसा सांप आकर फुँफकार रहा है। ललकार रहा है। दुत्कार रहा है...धिक्कार रहा है! धिक्कार! पर नहीं, जीवन जिसने शून्य से शुरू की है उसे पता होता है कि जीवन क्या है! गिरकर उठाना। फिर से चलना। फिर से गिरना, और कुछ है क्या..

शब्द
***
शब्दों में मत बांधो
शब्द तो समुद्र है
शब्द ही तो रूद्र है
शब्द ही तो शुद्र है
शब्द ही तो क्षुद्र है

शब्द ही दरिद्र है
शब्द ही निःशब्द है
शब्द ही शब्द-शब्द है..

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें